अनुप्रयुक्त कला के माध्यम से पारंपरिक शिल्प का संरक्षण
Keywords:
अनुप्रयुक्त कला, पारंपरिक शिल्प, सांस्कृतिक संरक्षण, भारतीय ज्ञान परंपरा, नवाचार, डिजिटलीकरण, कला, शिक्षाAbstract
भारत की सांस्कृतिक विरासत में पारंपरिक शिल्प एक महत्वपूर्ण घटक है जो न केवल सौंदर्यबोध बल्कि सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय स्थिरता को भी अभिव्यक्त करता है। यह शिल्प पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होते हुए स्थानीय समुदायों की पहचान और जीविकोपार्जन का साधन बना रहा है। परंतु आधुनिकता की दौड़, बाजारीकरण, और तकनीकी नवाचारों ने इन पारंपरिक शिल्पों के अस्तित्व को संकट में डाल दिया है। ऐसे में अनुप्रयुक्त कला एक ऐसा माध्यम बनकर उभरती है जो पारंपरिक शिल्पों को समकालीन संदर्भ में पुनःजीवित करने, संरक्षित करने तथा नवप्रयोग के द्वारा उन्हें आधुनिक समाज से जोड़ने का कार्य करती है। इस आलेख में यह विश्लेषण किया गया है कि अनुप्रयुक्त कला किस प्रकार पारंपरिक शिल्पों के संरक्षण में सहायक बन रही है। आलेख में वस्त्र कला, मृत्तिका शिल्प, लकड़ी शिल्प, धातु शिल्प, चित्रांकन और आभूषण निर्माण जैसे विविध शिल्पों को उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत किया गया है। इसके अतिरिक्त, भारतीय ज्ञान परंपरा, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, और वैश्विक सांस्कृतिक संरक्षण की दृष्टियों को भी जोड़ा गया है ताकि यह स्पष्ट हो सके कि किस प्रकार अनुप्रयुक्त कला एक सेतु का कार्य कर रही है।
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